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Shailesh Lodha poem on Maa

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कल जब उठ कर काम पर जा रहा था अचानक लगा कोई रोक लेगा मुझे और कहेगा खड़े-खड़े दूध मत पी हजम नहीं होगा दो घड़ी सांस तो लेले इतनी ठंड कोर्ट भूल गया इसे भी अपने पास लेले मन में सोचा मां रसोई से बोली होगी जिसके हाथों में सना आटा होगा पलट के देखा तो क्या मालूम था कि वहां सिर्फ सन्नाटा होगा अरे अब हवाएं ही तो बात करती है मुझसे लगता है जब जाऊंगा किसी खास काम पर तो कोई कहेगा दही शक्कर खा ले अच्छा शगुन होता है कोई कहेगा गुड़ खा ले बेटा अच्छा शगुन होता है पर मन इसी बात के लिए तो रोता है कि मां सब कुछ है सब कुछ जिस आजादी के लिए मैं तुमसे सारी उम्र लड़ता रहा वह सारी आजादी मेरे पास है। मां बचपन में टोकती है यह मत कर वह मत कर यहां मत जा यह मत खा यह मत पी उसके साथ मत बैठ तब हम आजाद होना चाहते हैं और आजादी की कीमत क्या कि जिस आजादी के लिए तुझसे मैं सारी उम्र लड़ता रहा सारी आजादी पास है फिर भी ना जाने क्यों दिल की हर धड़कन उदास है कहता था ना तुझसे कि करूंगा वह जो मेरे जी में आएगा आज मैं वही सब कुछ करता हूं जो मेरे जी में आता है बात यह नहीं है कि मुझे कोई रोकने वाला नहीं है बात है तो इतनी सी सुबह देर से उ...